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इ॒मां मे॑ मरुतो॒ गिर॑मि॒मं स्तोम॑मृभुक्षणः । इ॒मं मे॑ वनता॒ हव॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imām me maruto giram imaṁ stomam ṛbhukṣaṇaḥ | imam me vanatā havam ||

पद पाठ

इ॒माम् । मे॒ । मरुतः॑ । गिर॑म् । इ॒मम् । स्तोम॑म् । ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒ । इ॒मम् । मे॒ । व॒न॒त॒ । हव॑म् ॥ ८.७.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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शिव शंकर शर्मा

प्राणायाम के गुणों का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे प्राणो ! हे इन्द्रियो ! आप सब (मे) मेरी (इमाम्) इस (गिरम्) वाणी को (वनत) सेवन करें। पूजाकाल में मैं जिन वचनों द्वारा ईश्वर की उपासना प्रार्थना करता हूँ, उनको सुनें अन्यत्र न भागें। इसी प्रकार (ऋभुक्षणः) हे महान् इन्द्रियो ! जिस कारण आप महान् हैं, अतः स्थिर होकर (इमम्+स्तोमम्) इस प्राचीन स्तोत्र को (वनत) सुनें। पुनः (मे) मेरे (इमम्+हवम्) इस आह्वान को (वनत) सुनें ॥९॥
भावार्थभाषाः - पूजा, सन्ध्या और यज्ञादि शुभकर्मों के समय अपनी समस्त इन्द्रियवृत्तियों को स्तुति प्रार्थना और उपासना में लगावें ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋभुक्षिणः, मरुतः) हे महत्त्वविशिष्ट योद्धाओ ! (इमाम्, मे, गिरम्) इस मेरी प्रार्थनाविषयक वाणी को (इमम्, स्तोत्रम्) इस स्तोत्र को (इमम्, मे, हवम्) इस मेरे आह्वान को (वनत) स्वीकार करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो निर्भय होकर युद्ध में मरें या मारें वे “मरुत्” कहलाते हैं, “ये म्रियन्ते यैर्वा जना युद्धे म्रियन्ते ते मरुतः”=जो अपराङ्मुख होकर युद्ध करते हैं और जिनको मरने से भय और जीने में कोई राग नहीं, ऐसे योद्धाओं का नाम “मरुत्” है। उक्त मरुतों की माताएँ उनको तीन प्रकार का उत्साह प्रदान करती हैं ॥९॥
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शिव शंकर शर्मा

प्राणायामगुणवर्णनमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मरुतः=प्राणाः=इन्द्रियाणि। यूयम्। मे=मम। इमाम्=प्रार्थनासमये विधीयमानाम्। गिरम्=वाणीम्= वनत=संभजत=सेवध्वम्। हे ऋभुक्षणः=महान्तः। इमं स्तोमम्। पुनः। इमं मे हवं वनत ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे योधाः ! (ऋभुक्षिणः) महान्तः (इमाम्, मे, गिरम्) इमां मे प्रार्थनावाचम् (इमम्, स्तोमम्) इमं स्तोत्रम् (इमं, मे, हवम्) इमं ममाह्वानं च (वनत) संभजध्वम् ॥९॥